क्या चढूनी व टिकैत के वर्चस्व की लड़ाई ने कमजोर किया किसान आंदोलन? ः कैसे रखें वर्चस्व कायम, राकेश टिकैत और गुरनाम चढ़ूनी में चैधर की जंग शुरू ः पहले से कम हुआ राकेश टिकैत का जादू, सोशल मीडिया पर आ रहे गलत कमेंट

संजीत खन्ना की कलम से:
तीनों कृषि सुधार कानूनों के विरोध में बीते नवंबर से चल रहे आंदोलन में दो बड़े नेताओं राकेश टिकैत और गुरनाम चढ़ूनी में चैधर की जंग आंदोलन की शुरूआत से ही चलती आ रही है। हालांकि पहले ये जंग पर्दे की पीछे देखी जा रही थी, लेकिन अब ये जंग एक बार नही बल्कि कई दफा बाहर आ चुकी है। अब तो आलम ये है कि दोनो नेता खुलकर एक दुसरे के खिलाफ बगावत देखी जा रही है। टिकैत व चढुनी की वर्चस्व की लडाई में किसान आंदोलन काफी कमजोर हुआ है। जो आंदोलन विश्व का सबसे लंम्बा चलने वाला व शांत आंदोलन था उस आंदोलन में पार्टी के नेताआंे की राजनीति से ज्यदा इन दोनो किसान नेताआंे की राजनीति ज्यादा दिखाई दे रही है।

टोहाना व हिसार का ताजा प्रकरणः

ताजा प्रकरण टोहाना व हिसार का है। जहां टोहना में विधायक देवेन्द्र बबली प्रकरण मामले में किसानो पर पुलिस ने मामले दर्ज किए तो चढुनी के बयान में उन किसान सयुक्त किसान मोर्चा का किसान नही बताया जाता है तो वही राकेश टिकैत जी उन्ही किसानो को आंदोलन का हिस्सा बताते हुए उन्हे छुडवाने के लिए टोहाना पहंुच जाते है, हालांकि बाद में चढुनी जी बाद में किसानो को अपना बताते हुए टोहाना में दस्तक दे जाते है। वही बात की जाए हिसार प्रकरण की तो मुख्यमंत्री मनोहर लाल कोविड अस्पताल का लोकार्पण करने पहुंचे थे तो आंदोलनकारियों ने उनके जाने के बाद अस्पताल तक पहुंचने का प्रयत्न किया। हिंसा हुई। आंदोलनकारी व पुलिसकर्मी घायल हुए।  बाद में प्रशासन और आंदोलनकारी नेताओं में वार्ता हुई। टिकैत और चढ़ूनी दोनों मौजूद थे, लेकिन टिकैत आधे घंटे विलंब से भीतर गए। बाहर प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते रहे। उस दिन बात इतने पर खत्म हो गई। लेकिन दो दिन बाद चढ़ूनी ने कहा कि आंदोलन को उत्तर प्रदेश में भी धार देनी होगी। यदि वहां के नेता (संकेत टिकैत बंधुओं, राकेश टिकैत और नरेश टिकैत की तरफ था) यदि इसके लिए आगे नहीं आते तो किसान स्वयं आंदोलन को धार दें। इसके बाद उन्होंने देश भर के कई संगठनों का एक फेडरेशन बनाने की घोषणा की। यद्यपि उन्होंने कहा कि उनका फेडरेशन आंदोलन चला रहे संयुक्त किसान मोर्चा का सहयोगी संगठन होगा, लेकिन यह स्थायी होगा। वर्तमान आंदोलन के खत्म होने बाद भी जब कहीं का किसान अपने हितों को लेकर आंदोलन करेगा, तो उनकी आवाज उठाएगा। उन्होंने टिकैत पर संकेतों में टिप्पणी की, कहा, हिसार में समझौता वार्ता के दौरान वहां कमिश्नर ने प्रश्न किया कि हिसार में ही आंदोलन क्यों, उत्तर प्रदेश में क्यों नहीं? तो हमें शर्मिंदगी हुई। अब हिसार के कमिश्नर ने क्या कहा था, यह तो चढ़ूनी-टिकैत या वार्ता में शामिल अधिकारी-नेता जानें, लेकिन उसी दिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ राकेश टिकैत के गृह जनपद मुजफ्फरनगर में थे।

कमिश्नर के कहने का आशय था कि यहां मनोहर लाल का विरोध तो कर रहे हैं, अपने यहां योगी का क्यों नहीं कर रहे।
चढुनी के संगठन से टिकैत को दिक्कत क्यांे, टिकैत को क्यों कहना पडा सबको चैधर प्यारी है
चढ़ूनी के नए संगठन की बात पर टिकैत ने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा के साथ देश भर के 550 किसान संगठन जुड़े हुए हैं। इससे इन संगठनों के प्रभाव और क्षेत्र का अनुमान लगाया जा सकता है। यह प्रश्न भी उठता है कि जब ये सभी किसान हित के लिए काम करने का दावा करते हैं और सबका लक्ष्य एक है तो इतने संगठन क्यों? उत्तर है, सब को चैधर प्यारी है। कोई दूसरे को चैधरी मानने को तैयार ही नहीं। सरकार से वार्ता के लिए पहले जो 40 संगठन जाते थे, उनमें 31 पंजाब के होते थे। आंदोलन की कमान 26 जनवरी को दिल्ली में हुई हिंसा के पहले तक पंजाब के संगठनों के हाथ में थी, लेकिन हरियाणा के चैधरी चढ़ूनी ही थे। उन्हें दिक्कत 26 जनवरी के बाद हुई। दिल्ली में हुई हिंसा के कुछ दिन बाद ही हरियाणा में उनकी चैधर को चुनौती मिली। आंसू बहाकर आंदोलन को पुनर्जीवित करने का श्रेय बटोर लेने वाले राकेश टिकैत ने हरियाणा के उसी हिस्से में पंचायतें करनी शुरू कर दीं, जो आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहा था। तब चढ़ूनी का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वह टिकैत पर आक्षेप करते दिखे थे।

क्या पहले से कम हुआ टिकैत का जादू
26 जनवरी को लालकिले पर हुए उपद्रव के बाद जैसे ही किसानो पर आरोप लगने के बाद आंदोलन मानो कमजोर सा हो गया था। लेकिन अगली ही रात को गाजीपूर बार्डर राकेश टिकैत के आसंूओं ने आंदोलन को पुनर्जीवित कर दिया। हरियाणा ही नही देश के विभिन्न हिस्सों से किसान ही नही बल्कि विभिन्न पार्टीयों के नेता गाजीपूर बार्डर पहुंचे। हरियाणा से भी इनेलो के अभय चैटाला तो कांग्रेस राज्यसभा सांसद दीपेन्द्र हुडडा गाजीपूर बार्डर राकेश टिकैत के आंसू पोछने के लिए पहुंचे।इसमें भी कोई दोहराय नही है कि राकेश टिकैत के उन आंसूओ ने आदोंलन को पहलेे से भी ज्यादा मजबूत कर दिया। लेकिन आज वही आंदोलन इन्ही नेताओं की बदोलत न केवल बट गया है बल्कि कमजोर भी हो गया है।


सच्चे और दिल से जुडे किसान को पहुंची ठेस
इस आंदोलन में 80 प्रतिशत किसान दिल से जुडे थे, तभी ये आंदोलन इतना मजबूत बना था। पंजाब के किसान भाईयो ने बखूबी ढंग से शांति का परिचय दिया। हालांकि कुछ जगह हल्की-फुल्की तलवारें दिखाई दी। वही हरियाणा के किसान भी तनमन धन से इस आंदोलन से जुडे। तभी ये आंदोलन इतना लम्बा चलता  आ रहा है। लेकिन इस आंदोलन में वो किसान अब सबसे ज्यादा दुखी है जो दिल से और सच्चे मन से जुडे थे, उन्हे बेहद ठेस पहुंची है। आज बीस प्रतिशत किसान नेताओ की ही राजनीति और वर्चश्व की लडाई ने न केवल इस आंदोलन आंदोलन का कमजोर किया है बल्कि बहुत सारे किसानो के दिलों पर ठेस भी पहुंचाई है।

छह महिने हो गए कब निकलेगा हल
किसान आंदोलन देश ही नही बल्कि विश्व का सबसे बडा आंदोलन है। इतना लंबा और शांत आंदोलन इतिहास में पहले कभी नही देखा गया। खैर सवाल अब ये खडा होता है कब तक किसान ऐसे ही बार्डरो पर बैठे रहेंगे और कब तक आम लोगो को परेशानी होगी। क्या सरकार को इस तरफ अब ध्यान नही देना चाहिए। जब संयुक्त किसान मोर्चा खुद सरकार से बातचित करने की घोषणा कर चुका है। तो को भी  अब सरकार किसानो से बातचित करके केाई हल निकालना चाहिए। दोनो तरफ से जिद, अंहकार को त्यागकर सकारातम्क माहौल में जिन मुददो पर सहमति बनती है उन्हे आगे बढाते हुए इस आंदोलन को खत्म करना चाहिए। ताकि दिन प्रतिदिन बढती आपसी खाई खत्म हो और हिंदुस्तानी सिर्फ हिंदुस्तानी बने ना कि राज्यों में बटता नजर आए। सरकार को अब एक नही बल्कि दो कदम आगे बढाते हुए इस आंदोलन को खत्म कर ंिहंदुस्तान व हिंदुस्तानी के विकास की तरफ अग्रसर होना चाहिए।
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हो सकता है कुछ लोगो को मेरी ये खबर अच्छी न लगे, कई लोग कहे ये आदांेलन को कमजोर करने की साजिश है। लेकिन जो सच है और जो चल रहा है वही लिखा है। आप सबको भी अपनी बात रखने का हक है।
धन्यवाद